शहर के गिद्धों से जंगल के गिद्ध अच्छे हैं..!

 आज सुबह सुबह प्रिय मित्र प्यारे मोहन का फोन आया कि बुंदेलखंड क्षेत्र में वन्य प्राणियों से संबंधित बड़ी खबर हे कि  सागर दमोह के जंगलों में में डेढ़ हजार से अधिक गिद्ध हो गए। जवाब में बरबस ही मुंह से निकल गया कि गिद्ध जंगल में ही नहीं शहर में भी तेजी से बढ़ गए हे बस बात इतनी हे कि इनकी गिनती नहीं होती। थोड़ी देर बाद अपनी ही बात पर सोच में पड़ गया कि मजाक में भी सही कहना गुनाह हे।लेकिन हालातों पर गौर करे तो असहज लगता हे।कोई गरीबों का राशन खा रहा,कोई तेल पी गया,कोई सड़क खा गया,कोई बिल्डिंग खा गया और कोई शौचालय खा गया,कोई जमीन खा गया।जहां देखो नियमों की दुहाई देने वाले भ्रष्टाचार की दुकानें नहीं गोदाम खोले बैठे है।संभव हे लोगो के गले से यह बात नहीं उतरेगी पर सोचो जरा यह भी एक किस्म के गिद्ध ही है।मजेदार बात हे कि सड़ा गला मास खाने वाले गिद्ध इन गिद्दों से ज्यादा बेहतर हे।जो अनुपयोगी चीजें खाते हे,और प्रकृति को स्वच्छ रखने में सहायक हे।लेकिन शहर के गिद्ध अरे राम...यह तो दूसरे का हक,भी खा जाते है।और समाज को प्रदूषित कर रहे है।


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